आँगन के राज़ रखते हैं ये बंद दरीचे
गुल जानता है कैसे हैं ये बाग़ बग़ीचे
जी चाहता है सबसे चले जाएँ कहीं दूर
है कुछ तो क़शिश तुझ में जो रखती है खींचे
हर चाल जो चलता था खोल कर आँखें पल भर में फ़लक पहुँच गया पलकें मींचे
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