Tuesday, 13 September 2011

ग़र बचेगी ज़िंदगी

क़ातिलों से भर गयीं हैं बस्तियां    
कितना तनहा हो गया है आदमी

इस अँधेरे में उठा कर अपने हाथ  
किस से मांगें क़र्ज़  थोड़ी रोशनी
 
अपने घर  वापस तभी जा पाओगे
लौटने तक ग़र  बचेगी   ज़िंदगी    

मुफलिसी से  है मेरा  नंगा बदन
लोग कहते हैं   जिसे  आवारगी

आज हम आज़ाद हैं कैसे कहें
अपने घर में हो गए हम अजनबी

जो भी सच बोलेगा मारा जाएगा
क्या यही है तेरी सच्ची रहबरी
गोरा क़ातिल अपने घर वापस गया
अब लहू पीता है काला आदमी

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