क़ातिलों से भर गयीं हैं बस्तियां
कितना तनहा हो गया है आदमी
इस अँधेरे में उठा कर अपने हाथ
किस से मांगें क़र्ज़ थोड़ी रोशनी
अपने घर वापस तभी जा पाओगे
लौटने तक ग़र बचेगी ज़िंदगी
मुफलिसी से है मेरा नंगा बदन
लोग कहते हैं जिसे आवारगी
कितना तनहा हो गया है आदमी
इस अँधेरे में उठा कर अपने हाथ
किस से मांगें क़र्ज़ थोड़ी रोशनी
अपने घर वापस तभी जा पाओगे
लौटने तक ग़र बचेगी ज़िंदगी
मुफलिसी से है मेरा नंगा बदन
लोग कहते हैं जिसे आवारगी
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