ग़र तमन्ना है थोड़ी देर और जीने की
अपने आग़ोश में भर लो खुली हवाओं को
भिगाती जाएँ सारी रात बारिश की ये बूंदे
बना के रक्खो तुम महमान इन घटाओं को
ज़मीं मेरी है उसी से लिपट के रो लूँगा
क्यूँ सुनाऊं मैं दर्द अपना इन फिज़ाओं को
किसे मालूम है क्या लाएगा नया लमहा
सम्हाले रखना बुरे वक़्त में दुआओं को
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