Tuesday, 13 September 2011

शर्मिंदा हूँ


बहुत  पहले ही हो  चुका था दफ़न 
ये क्या कम है कि फिर भी ज़िंदा हूँ


बग़ैर पंख के  परवाज़ की तमन्ना है
कितना माज़ूर हूँ बेबस हूँ एक परिंदा हूँ

न पिला मुझको शिकस्तों की शराब 
अपनी नाकामियों से  पहले ही शर्मिंदा हूँ


बिला वजह न काट देना मुझे ऐ दोस्त
तेरे बदन की मैं ताकत हूँ मैं  रगे जां हूँ

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