Wednesday, 14 September 2011

मौत तय है

ज़िंदा रहना है तो फिर जान रख हथेली पे
मौत तय है जो ख़ुद अपने से डर जाए कोई

ये बात और  है मेरी आँखों में  बहुत पानी में
कितना रोऊंगा अगर शाम को मर जाए कोई

मुझे बता के जो जाए उसे आवाज़ भी दूँ
कैसे रोकूंगा जो चुपचाप गुज़र जाए कोई

तू  कौन  है और क्या है तेरे  घर का निशां
कैसे  ढूंढे   तुझे  ग़र तेरे शहर जाए कोई
एक रहबर भी ज़रूरी है क़ाफ़िले के लिए
ये न  हो  कोई  इधर जाए  उधर जाए कोई

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