ज़िंदा रहना है तो फिर जान रख हथेली पे
मौत तय है जो ख़ुद अपने से डर जाए कोई
ये बात और है मेरी आँखों में बहुत पानी में
कितना रोऊंगा अगर शाम को मर जाए कोई
मुझे बता के जो जाए उसे आवाज़ भी दूँ
कैसे रोकूंगा जो चुपचाप गुज़र जाए कोई
तू कौन है और क्या है तेरे घर का निशां
कैसे ढूंढे तुझे ग़र तेरे शहर जाए कोई
एक रहबर भी ज़रूरी है क़ाफ़िले के लिए
ये न हो कोई इधर जाए उधर जाए कोई
No comments:
Post a Comment