Chithhi
Monday, 12 September 2011
ज़ख्म अब दिल के
ज़ख्म अब दिल के पुराने हो गए हैं
तुम से बिछुड़े ज़माने हो गए हैं
राहे उल्फ़त पर चले थे साथ मिलकर
अब तो वो भी फ़साने हो गए हैं
मार कर इंसान को करते इबादत
लोग भी कितने दीवाने हो गए हैं
अब हमें भी मिल गए हैं कुछ नए ग़म
दिल को समझाने के बहाने हो गए हैं
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