मत दिल जलाओ अपना उजालों के वास्ते
क्या होगा रोशनी से अंधों के शहर मेँ
खा पी के सो चुके हें क़बीले के सरपरस्त
चूल्हा मुआ जले न जले औरों के घर मेँ
जिसको सिखाने थे तुम्हे जीने के सलीक़े
मुफ़लिस वो मर चुका है कल पिछले पहर मेँ
जिसने सही है उम्र भर हालात की तपिश
निकलेंगी कैसे कोपलें उस सूखे शजर मेँ
दाना जो घर में हो या ना हो उसको इससे क्या
कंबख्त भूख लगती ही है दोनों पहर मेँ
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