Chithhi
Thursday, 26 May 2011
हम चमेली उगायेंगे इस मर्तबा
फिर से शाखों पे आया है एक बांकपन
कह दो कांटो से कम कर दें अपनी चुभन
बन के दुल्हन चमन में बहेगी सबा
हम चमेली उगायेंगे इस मर्तबा
सुन पपीहे की मीठी मोहब्बत की धुन
फिर चले हैं नए प्यार के सिलसिले
कोपलों से भरीं इस तरह वादियाँ
जैसे शानों पे गेसू हों तेरे खुले
साहिले गंगा जैसी हैं पलकें तेरी
इनमें रचने को काजल मिलेगा कहाँ
छोड़ कर के ज़मानें की सब दौलतें
जी करे है बना लें यहीं आशियाँ
और जीने को कहते है तेरे नयन
फिर से शाखों पे आया है एक बांकपन
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