भूखे लोगों ने बनाए हैं बुत ये पत्थर के
तुम समझते हो हुकूमत ने बदला है शहर
तो जाओ देखलो जा कर के उसकी बस्ती में
आज भी टूटा पड़ा है उस मजदूर का घर
वो जो बैठा है पहने हुए सफ़ेद लिबास
बंद सीने में उसके है सियाह रात सा दिल
सरे बाज़ार लुटी थी जो तिजोरी शाही
उसकी साजिश में यही आदमी था खुद शामिल
खड़ा है सामने एक बूढ़ा और मांगता है भीख
हुई तरक्की का अंजाम है यही सूरत
जंगे आज़ादी के लिए खून बहाने वालो
ढूंढ़ लो इसकी पसलियों में चमकता भारत
behtareen rachna sir....
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