छुप गया वक़्त के पहलू में उम्र का सूरज
कब हुई रात ये पता न चला
अब तो उन से भी पहले से मरासिम न रहे
क्या हुई बात ये पता न चला
मेरे आँगन में हैं अब भी तेरे क़दमों के निशां
कब छुटा साथ ये पता न चला
लोग रोते हुए निकलें हैं तेरी गलियों से
क्या थे हालात ये पता न चला
क्यूँ थे मालूम सभी को बस एक तेरे सिवा
मेरे जज़्बात ये पता न चला
जश्ने दुनियाँ था या किसी की मैयत
तेरी बारात ये पता न चला
No comments:
Post a Comment