ये उलझी उलझी सी राहें , कुछ घूमे घूमे से रस्ते
इन गलियारों में बिकते हैं,जीवन कुछ महंगे कुछ सस्ते
बहती जाती निर्मम सरिता सागर में मिल मिट जाने को
और किनारे के पत्थर सब आलिंगन को रहे तरसते
किसी किसी के घर आँगन में बस कर रह जाता है सावन
कोई दो बूंदों को तरसे ,बादल जब घनघोर बरसते
कुछ लोगों के थोड़े दुःख पर भारी भीड़ उमड़ आती है
किसी किसी के तन्हाई में मन के सारे घाव कसकते
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