Wednesday, 25 May 2011

तेरी याद आई

आज अनजाने आँख भर आई
ऐसा लगता है तेरी याद आई

कितने मजबूर हैं हम भी तुम भी
जी में आये सो कर नहीं पाते
सुख तो आता है बड़ी मिन्नत से
ग़म कभी पूछ कर नहीं आते

कितनी है बेरहम ये तन्हाई
ऐसा लगता है तेरी याद आई

बहुत आसां है इबादत रब की
राहे उल्फत नहीं ज़रा भी सहल
कितनी मुमताज़ों ने दम तोडा है
रोज़ जलते हैं कितने ताजमहल

सिर्फ हासिल हुई है रुसवाई
ऐसा लगता है तेरी याद आई
 

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