पैदा करती है इन्सान को हाँ वही लड़की
ये आदमी जिसे इंसान का दर्ज़ा न दे सका
कितने प्यासों ने देहलीज़ पे दम तोड़ दिया
वो समंदर था एक बूँद भी क़र्ज़ा न दे सका
पढी है ग़ौर से मैंने भी मरासिम की क़िताब
गवाही तेरी वफ़ा की एक भी सफ़हा न दे सका
मसीहा रोशनी का समझा जिसको मैंने उम्र भर
रातों को मेरी उजली सी सुबहा न दे सका
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