Friday, 28 September 2012

इलज़ाम मेरे सर आये

उसने देखा है मुझे प्यार की निगाहों से
खुदा करे ये वक़्त बस यहीं ठहर जाए

इस मुलाक़ात का कोई भी निशाँ न बचे
इससे पहले कि ये इलज़ाम मेरे सर आये

तेरी दीवारों से टकराया हूँ जाने कितनी बार
क्या ये मुमकिन है कभी तू भी मेरे घर आये

ये हौसला ये तसल्ली ये दुआओं का असर

क्या करेगा जो सरे शाम कोई मर जाए

नशा यादों का बना रहने दे रात बाक़ी है
मुझे डर है नीम शब ये भी न उतर जाए

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