फ़लक नहीं , ज़मीं नहीं हवा भी नहीं
आबो आतिश नहीं तो और क्या है तू
गिर के टूटें हैं तो आज ये जाना हमने
हम हैं सब क़ैदी मुश्किल बड़ी सज़ा है तू
ज़िंदगी तुझको सराहा है मिन्नतें भी कीं
एक दिन छोड़ के चल देगी बेवफा है तू
यहाँ होता है जो वो सच में नहीं होता है
सिर्फ होने का सा एहसास हो गया है तू
फ़लक --> आसमान , आबो आतिश-->पानी और आग
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