एक दीवानी नज़र कितना देख सकती है
तुमको क्या समझे थे क्या तुम निकले
मत बताना किसी को कि मर चुका हूँ मैं
सूनी राहों से जनाज़ा मेरा गुमसुम निकले
मेरी ख्वाहिश है मेरी मौत पे रोये न कोई
सिसकी भी अगर ले तो वो मद्धम निकले
माहताब के मानिंद चमकता रहे चेहरा तेरा
जब भी देखूं मैं तेरी आँख न पुरनम निकले
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