Sunday, 16 September 2012

कोई नया हादिसा



न झांकिए बेवजह दरीचों से
कोई नया हादिसा होता न दिखे

साथ महफ़िल में हंस रहा था वही
लिपटा दीवारों से रोता न दिखे



हमें था रश्क जिसकी खुशियों से
दर्द के बोझ को ढोता न दिखे

हमसे कहता था जागते रहना
मौत की नींद में सोता न दिखे
............

न झांकिए बेवजह दरीचों से
वो किसी और का घर है

आप डर जाएँगे देखने के बाद
मुझको इस बात का डर है

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