न झांकिए बेवजह दरीचों से
कोई नया हादिसा होता न दिखे
साथ महफ़िल में हंस रहा था वही
लिपटा दीवारों से रोता न दिखे
हमें था रश्क जिसकी खुशियों से
दर्द के बोझ को ढोता न दिखे
हमसे कहता था जागते रहना
मौत की नींद में सोता न दिखे
............
न झांकिए बेवजह दरीचों से
वो किसी और का घर है
आप डर जाएँगे देखने के बाद
मुझको इस बात का डर है
दर्द के बोझ को ढोता न दिखे
हमसे कहता था जागते रहना
मौत की नींद में सोता न दिखे
............
न झांकिए बेवजह दरीचों से
वो किसी और का घर है
आप डर जाएँगे देखने के बाद
मुझको इस बात का डर है
No comments:
Post a Comment