तुम जो चलते हो तो चलते हैं शजर भी
और हमको छोड़ जाते हम सफ़र भी
हर एक सूरत लगती है क्यूँ तेरी सूरत
प्यार में पागल है कितनी ये नज़र भी
...
कितने बरसों देखी हैं राहें तुम्हारी
एक नज़र तो देख लेते तुम इधर भी
एक शब मुश्किल दहकती ख्वाहिशों की
कौन जल सकता है इनमें उम्र भर भी
और कब तक छिप सकोगे तुम ऐ क़ातिल
एक दिन पहचान लेगा ये शहर भी
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