Chithhi
Sunday, 19 February 2012
मसीहे रौशनी के
कितने सारे रंग बदले आसमां ने
भूखी थी भूखी है अब भी ये ज़मीं
ढूंढ के लाओ मसीहे रौशनी के
जुगनुओं से तीरगी घटती नहीं
अब खुली आँखों में भी आते हैं ख्वाब
इतनी लम्बी रात यूँ कटती नहीं
सूरतों को ले उड़ा है बीता कल
एक तेरी तस्वीर ही हटती नहीं
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment