वो भी खो जातीं हैं बहता हुआ पानी बनकर उम्र होती है घटाओं की बस बरसने तक
कहीं नासूर न बन जाएँ ज़ख्म मेरे माज़ी के आ तसव्वुर में मेरे रात की रानी बन कर
दिल के वीराने में ये शब न उतर जाय कहीं
समा जा सीने में एक शाम सुहानी बन कर
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