Wednesday, 15 February 2012

न मिला तू तो

न मिला तू तो कशिश बाक़ी है
ज़िंदा रहने का एक बहाना है
ज़रा ठहर मेरी आँखों में अभी
सूने दिल में तुझे बसाना है
थोड़ी  देर और मिली है मोहलत 
अपने हिस्से की मुझे पीने दे
कोई रास्ता नहीं यहाँ से घर का  
सिर्फ एक आसमां  ठिकाना है 
अब दरख्तों से गिर गए पत्ते
इस बरस तू कोई उम्मीद न कर
जिन हवाओं से नूर बरसा था
उन्हें भी लौट कर के जाना है
वक़्त के इन दहकते शोलों में
क्या जिए बूँद एक शबनम की
सुना चुका हूँ   दास्ताने शिकस्त 
अब मुझे और  क्या सुनाना है
 

 

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