बहुत कम रोशनी बाक़ी है इन जलते चराग़ों में
मिलेगा अब तुम्हे भी क्या बुझी शम्मा बुझाने से
मैं एक टूटा हुआ शीशा मेरी क़ीमत ही अब क्या है
तुम्हे तक़लीफ़ ही होगी मेरी बोली लगाने से
तुम्हे झूठे बहानों से है पहले से शनासाई
मेरी बस्ती में भी आओ किसी झूठे बहाने से
इजाज़त है तुम्हे दिल में मेरे नश्तर चुभाने की
अगर मैं भी करूँ ऐसा तो मत कहना ज़माने से
उसे मालूम है राहे वफ़ा में मौत मिलती हैं
क्यूँ चलता है इन राहों पे ये पूछो एक दीवाने से
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