जब भी उठाई आँख तो हर बार ऐसा लगता रहा
कि छत से हाथ बढ़ाएंगे और छू लेंगे आसमां
उम्र भर कोशिशें नाक़ाम हुई हैं क़रीब आने की
बड़ा कम फ़ासला था तेरे मेरे दिल के दरमियाँ
कहाँ से आज चले आये हैं ये लोग मेरी महफ़िल में
कल जो रोया तो किसी दोस्त का कंधा न था यहाँ
ताना मुझे तुम आज की शिकस्त का क्यूँ देते हो
यहीं एक दिन मेरा ये दिल भी हुआ था धुआं धुआं
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