गुलदस्ते में थे रिश्तों के फूल
वो भी मुरझा गए हैं रात भर में
बचा के रखना अपने अश्क़ों को
बहुत महंगा है पानी इस शहर में
तमाम उम्र वफ़ाओं का सिलसिला
बस एक दीवानगी तेरी नज़र में
दूर मिलते हैं ज़मीं आसमां भी
तुम से हम क्यूँ न मिले उम्र भर में
है अच्छा दौर तो सब अपने हैं
है अपना कौन एक मुश्किल सफ़र में
न कोई शाख न पत्ते और उजड़ा बदन
कैसे आयेंगे अब फूल इस शजर में
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