रोते लोगों की क़तारें खड़ी हैं मेरे दरवाजे पे
क्या कोई आसमानी रूह थक कर सो गई है
उल्फ़त के मजारों पे बुझ गए हैं चराग़
शबे महताब है पर रोशनी कम हो गयी है
...
जाने वाले से मेरा कोई भी रिश्ता न था
फिर भी क्यूँ ये आँख पुरनम हो गई है
दिल में बसती थी एक मखमली आवाज
ऐसा लगता है कि अब वो भी मद्धम हो गई है
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