नज़र उठा और ख़ुद्दारी बचा के बातें कर
वो नज़र भी क्या जिस पे हज़ार पहरे हैं
हवा परस्त बहे होंगे हवा के रुख़ के साथ
हम जहाँ ठहरे थे अब भी वहीँ पे ठहरे हैं
न दे सफाई मुझे अपनी बेवफ़ाई की
मेरे सीने में लगे ज़ख्म बहुत गहरे हैं
नर्म लहज़ों में छिपा है सब इनका फ़रेब
सफ़ेद रंगों से चमके सियाह चेहरे हैं
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