नयनों से छलकी मदिरा की क्यूँ लगती है बरसात भली
बिन पिए मुसाफ़िर बहक गए , जब रूप की तेरे बात चली
वो रूह के अन्दर बैठा है , तेरी रग रग में शामिल है
फिर पूजा की थाली लेकर , क्यूँ ईश्वर ढूंढे गली गली
मैंने जीवन में बहुत सहा ,पर तुमसे कुछ भी नहीं कहा
मुझको भी रोना आता है ,मेरे मन में भी पीर पली
इस दिल के सख्त अंधेरों में, एक प्यार की शम्मा रहती है
मैं जलता बुझता रहा सदा ,वो हरदम मेरे साथ जली
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