चंद लोगों में ही बँट जाय वतन की दौलत
तुम्ही समझाओ कि ये कौन सी सियासत है
कि खड़ा हो सकूँ पैरों में वो ताकत ही नहीं
फिर भी गाता हूँ राष्ट्र गीत ये मेरी हिम्मत है
मैं जो मर जाऊँगा तो फिर तू भी जियेगा कैसे
मेरी ग़ुरबत मेरी मजबूरी तेरी ताक़त है
जिस हुक़ूमत में नहीं मिलते क़फ़न मुर्दों को
मेरे बदन पे हैं कुछ कपडे बहुत ग़नीमत है
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