इतना उंचा भी न उड़ भूल कर अपनी औक़ात
कि जब गिरे तो ज़मीं पर भी आसरा न मिले
इस बुरी तरहा न ठुकरा तू किसी के जज़बात
कि कल कोई चाहने वाला भी दूसरा न मिले
इसके टुकड़े यूँ न कर ये है भरोसे की ज़ंजीर
जो अगर जोड़ना चाहे भी तो सिरा न मिले
कर संभल कर के वो काम कि जिनका अंजाम
ग़र जो अच्छा न मिले कमसकम बुरा न मिले
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