आओ सुलगते दिल पर कुछ रोटियाँ पका लें
नीचे कमर से बाढ़ का पानी उतर गया है
वो रोज़ ही करता है इंसानियत का खून
तुम झूठ कह रहे थे क़ातिल सुधर गया है
कौड़ी नहीं मिली है मुफ़लिस को अभी तक
चोरी का माल था जो इधर से उधर गया है
नंगों की नुमाइश में करे किस तरफ निगाहें
ख़ुद शर्मसार होकर ईमान मर गया है
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