देश एक टूटता है
देश एक टूटता है
बटता है सूबों में
सूबों से शहरों में
शहरों से गाँवों में
गाँव से गलियों में
गलियां तब घुसती हैं
घर के गलियारों में
बंद दरवाजों में
खुद को भरे बाहों में
मन के अंधियारों में
एक अकेला आदमीं
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देश दूर छूट गया
बुरी तरह टूट गया
आदमी से आदमी
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