इतनी सज़ा काफ़ी है
शबनमी बूंदों में आंसू मिला कर पी लिए मैंने
आज दिन भर के लिए इतना नशा काफ़ी है
तेरी यादों में इतने सख्त लमहे जी लिए मैंने
बकाया उम्र के लिए बस इतनी सज़ा काफ़ी है
सुलग रहा है तो वो कल ख़ाक भी हो जाएगा
दिल से जितना भी निकलता है धुआं काफी है
दहशत का दौर है , रात है दरवाज़े बंद रहने दे
इन दरीचों से जितनी आती है हवा काफी है
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