रोने से न गया तेरा ग़म
मजबूर हो के हंसना पड़ा
छिपाये रखना था जो राज़
सरे बज़्म उसे कहना पड़ा
क़तरा तक़दीर बदल न सके
उसने रक्खा वैसे रहना पड़ा
उम्र भर डरते थे बरसातों से
आज सैलाब मॆं बहना पड़ा
मजबूर हो के हंसना पड़ा
छिपाये रखना था जो राज़
सरे बज़्म उसे कहना पड़ा
क़तरा तक़दीर बदल न सके
उसने रक्खा वैसे रहना पड़ा
उम्र भर डरते थे बरसातों से
आज सैलाब मॆं बहना पड़ा
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