तेरे बुलाने पे आये थे तेरी बज़्म में हम
नहीं पसंद तुझे ग़र तो चलो चलते हैं
नहीं बजता है हर घड़ी यहाँ राग बहार
वक़्त के साथ ज़माने के सुर बदलते हैं
बंदिशें इतनी हैं दुनियाँ की फिर भी में अरमान क्यूँ मचलते है
फितरतें हैं छिपीं शब के इन अंधेरों में
शमा बुझती है बेशुमार बदन जलते हैं
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