नहीं मिलती हैं मंजिलें अक्सर
उलझी राहों में बहकते हैं क़दम
दिन है तो साथ हैं हज़ारों का
डूबती शाम कितने तनहा हम
मुझको बस इतनी इजाज़त दे दे
तेरे ज़ख्मों पे रख सकूँ मरहम
साथ बस कुछ ही दौलतें हैं मेरी
एक तेरा ग़म और ज़माने के सितम
हमने देखी है यारब तेरी दरियादिली
ज़िन्दगी दी भी तो वो इतनी कम
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