होता है शर्मसार क्यूँ ग़र प्यार किया है
चलता है ज़माना भी इसी प्यार के दम से
मुड़ के न देख पीछे बहुत दूर है मंज़िल
तय होगा फासला न तेरे चार क़दम से
उजड़े हुए चमन में आयेगी कब बहार
आ कर के पूछती है सबा रोज़ ये हमसे
थे लोग बहुत फिर क्यूँ नज़र तुझ पे जा रुकी
शायद है कोई रिश्ता मेरा पिछले जनम से
चलता है ज़माना भी इसी प्यार के दम से
मुड़ के न देख पीछे बहुत दूर है मंज़िल
तय होगा फासला न तेरे चार क़दम से
उजड़े हुए चमन में आयेगी कब बहार
आ कर के पूछती है सबा रोज़ ये हमसे
थे लोग बहुत फिर क्यूँ नज़र तुझ पे जा रुकी
शायद है कोई रिश्ता मेरा पिछले जनम से
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