हम सादगी का तेरी करें किस तरह बयाँ
मासूमियत ही जैसे इंसान बन गयी है
कुछ पल के लिए आयी आँखों में तेरी सूरत
अब रातो दिन की जैसे महमान बन गयी है
एक तेरी आरज़ू भी कर ली है जब से दिल ने
मेरी हर ग़ज़ल का जैसे उन्वान बन गयी है
मिलने से पहले तुझसे अपना वजूद भी था
अब तू ही ज़िंदगी की पहचान बन गयी है
मासूमियत ही जैसे इंसान बन गयी है
कुछ पल के लिए आयी आँखों में तेरी सूरत
अब रातो दिन की जैसे महमान बन गयी है
एक तेरी आरज़ू भी कर ली है जब से दिल ने
मेरी हर ग़ज़ल का जैसे उन्वान बन गयी है
मिलने से पहले तुझसे अपना वजूद भी था
अब तू ही ज़िंदगी की पहचान बन गयी है
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