क़त्ल महबूब का हमने अपने हाथों से किया है
आवारा बन के गलियों में अब प्यार ढूँढते हैं
सब कुछ तो बिक गया है सियासत के खेल में
अब देश बेचना है खरीदार ढूँढते हैं
जो सदियों से खाती रही मौजों के थपेड़े
उस टूटी हुई क़श्ती में रफ़्तार ढूँढ़ते हैं
अपने ही गुनाहों से मिली है हमें शिक़स्त
क्यूँ जा के बस्तियों में गुनहगार ढूंढते हैं
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