इबादत को समझ पाते
तो हम तुम भी वली होते
ज़ख्म की टीस गर सहते
तो कांटे भी कली होते
नास्तिक है भूखा पेट
बस यही सोचता है
ये शजर से टूटते पत्ते
एक रोटी अधजली होते
तो हम तुम भी वली होते
ज़ख्म की टीस गर सहते
तो कांटे भी कली होते
नास्तिक है भूखा पेट
बस यही सोचता है
ये शजर से टूटते पत्ते
एक रोटी अधजली होते
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