मैं
सन १९७१ से डा अमर नाथ झा छात्रावास के सांस्कृतिक समारोह के लिए
कव्वालियों के लिए संगीत रचना करता आ रहा हूँ । मुझे यह विधा इस लिए पसंद
है कि इसमें ग़ज़ल , नज़्म , कविता और लोकगीत किसी का भी सहारा ले कर आप अपनी
बात कह सकते हैं । कई वर्ष पहले उदीशा की कव्वाली प्रतियोगिता में हम लोगों
को पारितोषिक धन राशि के रूप में मिला , संभवतया ५०० रु । १५ वर्ष पहले यह
धन राशि काफी होती थी । वह उदीशा विकलांगो को समर्पित
की गयी थी । बात यह उठी कि इस पैसे क्या किया जाय , किसी होटल में चल के
खाना खाया जाय... । पर मेरे कहने पर कि यह धन राशि किसी अच्छे कार्य में
लगाईं जाय , हम लोग भारद्वाज आश्रम पर गए और यह पैसा वहाँ के विकलांग
केंद्र के संचालक महोदय को दिया । कोई बंगाली बुज़ुर्ग थे , मुझे नाम याद
नहीं आ रहा है । उन्होंने सभी विकलांग बच्चों को एकत्रित किया और "हम होंगे
कामयाब " गाना गवाया । मेरे आंसू रोके नहीं रुक रहे थे और सोच रहा था कि
ईश्वर तू मुझे भी ऐसा ही बना देता तो मैं तेरा क्या बिगाड़ लेता ।
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