ज़ेहन में ज़िंदा हैं यादों के फूल
इतना बंजर नहीं हुआ हूँ मैं
अपने सीने में सजा कर रख लो
किसी फ़क़ीर की दुआ हूँ मैं
तेरी खुशियों से दूर हूँ फिर भी
तेरे हर ग़म से आशना हूँ मैं
मेरे हमदम मुझे बाहों में न भर
हवा में फैलता धुआं हूँ मैं
लफ़्ज़ों की शक्ल में आंसू बन कर
कितने जन्मों से बह रहा हूँ मैं
इस क़दर डूबा तेरी आँखों में
अब तो ख़ुद को ही ढूंढता हूँ मैं
इतना बंजर नहीं हुआ हूँ मैं
अपने सीने में सजा कर रख लो
किसी फ़क़ीर की दुआ हूँ मैं
तेरी खुशियों से दूर हूँ फिर भी
तेरे हर ग़म से आशना हूँ मैं
मेरे हमदम मुझे बाहों में न भर
हवा में फैलता धुआं हूँ मैं
लफ़्ज़ों की शक्ल में आंसू बन कर
कितने जन्मों से बह रहा हूँ मैं
इस क़दर डूबा तेरी आँखों में
अब तो ख़ुद को ही ढूंढता हूँ मैं
No comments:
Post a Comment