हाथ रब का हो जो सर पे तो हुनर आता है
लफ़्ज़ अश्कों में डुबो दें तो असर आता है
न दिखा हमको जो मस्ज़िद में न बुतखाने में
दिल के आईने में हर वक़्त नज़र आता है
तेरी गली को छू के आती है जब भीगी हवा
भूली चोटों का भी हर दर्द उभर आता है
बट चुकी है ज़मीं अब तो यही देखना है
कौन जाता है उधर, कौन इधर आता है
No comments:
Post a Comment