Wednesday, 15 June 2016

दोनों मरते हैं सहर होती है

चराग़ो शब की जंग के आखिर
दोनों मरते हैं सहर होती है

बेखबर रहता  है बेदर्द मेरी आहों से
ज़माने भर को गो इसकी  खबर होती है

हम ग़रीबों के पास है ही क्या
दौलते इश्क़ है सब तेरी नज़र होती है

न होता ग़म जो मुहब्बत की  चुभन
उधर भी होती ग़र जितनी इधर होती है