किसी दर पे तेरा झुका सर न होता
अगर डर न होता तो ईश्वर न होता
अगर मंज़िलें अपने हाथो में होतीं
तो दुनिया में कोई मुसाफिर न होता
तुझे ज़ुल्म सहने की आदत न होती
तो ज़ालिम कभी तेरा रहबर न होता
अगर आसमानों से कुछ रिश्ते बनाता
तो गिरने को बिजली तेरा घर न होता
अगर डर न होता तो ईश्वर न होता
अगर मंज़िलें अपने हाथो में होतीं
तो दुनिया में कोई मुसाफिर न होता
तुझे ज़ुल्म सहने की आदत न होती
तो ज़ालिम कभी तेरा रहबर न होता
अगर आसमानों से कुछ रिश्ते बनाता
तो गिरने को बिजली तेरा घर न होता