तेरे आगोश में बरसों जिए हैं काली रात
बस एक चराग़ से तू इतनी परेशां क्यूँ है
मैं तो बेताब हुआ बैठा हूँ मरने के लिए
तेरी महफ़िल में मेरे क़त्ल का चर्चा क्यूँ है
गुज़ारी सारी उमर सिसक सिसक
ज़िंदगी देने का मुझ पे तेरा अहसाँ क्यूँ है
लोग मर मर के दिए जाते हैं इसको तोहफ़े
ये क़ब्रगाह फिर भी इतना बयाबाँ क्यूँ है